एक समय की बात है, हरितपुर नाम का एक सुंदर गाँव था, जो पहले हरे-भरे पेड़ों, साफ नदियों ताजी हवा और प्रकृति (Nature) के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन समय के साथ, लोगों की लापरवाही और बढ़ते कचरे ने गाँव की सुंदरता छीन ली। हर जगह प्लास्टिक की बोतलें, पॉलिथीन, और कूड़े के ढेर लगे थे। नदी का पानी गंदा हो गया था, और पक्षियों की चहचहाहट मानो गुम हो गई थी। लोग बीमार पड़ने लगे और बच्चों को खेलने के लिए साफ जगह भी नहीं बची थी।
गाँव के बीचोंबीच एक पुराना वटवृक्ष था, जिसे लोग ‘जीवन वृक्ष’ कहते थे। कहते हैं कि इस पेड़ में हजारों सालों से प्रकृति की आत्मा बसी थी, जो सही समय पर प्रकट होकर पर्यावरण (Environment) की रक्षा करती थी।
प्रकृति का आगमन
एक रात, जब गाँव गहरी नींद में था, जीवन वृक्ष से एक चमकदार प्रकाश निकला और उसके साथ प्रकट हुईं — प्रकृति, पर्यावरण की सुपरहीरो! उसकी आँखें हरे पत्तों जैसी थीं और उसकी केशराशि बहती नदी जैसी। उसके वस्त्र फूलों और लताओं से बने थे और हाथ में एक जादुई छड़ी थी, जिसे ‘हरित दंड’ कहा जाता था।

सुबह होते ही, गाँव के बच्चे आश्चर्यचकित रह गए जब उन्होंने देखा कि कुछ जगहों पर कूड़ा अपने-आप साफ हो रहा है और सूखे पौधों पर नई पत्तियाँ आ रही हैं। सबसे पहले, प्रकृति ने गाँव के बच्चों को इकट्ठा किया और मुस्कुराते हुए बोली,
“मैं प्रकृति हूँ, और मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। क्या तुम मेरे साथ मिलकर अपने गाँव को फिर से सुंदर बना सकते हो?”
बच्चे खुश हो गए और चिल्लाए, “हाँ, हाँ! हम आपकी मदद करेंगे!”
रीसाइक्लिंग की शिक्षा
प्रकृति ने सबसे पहले बच्चों को रीसाइक्लिंग के बारे में सिखाया। उसने समझाया कि कैसे प्लास्टिक, कांच, कागज और धातु को अलग-अलग करके फिर से उपयोग में लाया जा सकता है। उसने बच्चों को एक खेल सिखाया — “कचरा योद्धा”। इसमें बच्चों को अलग-अलग रंग की टोकरियाँ दी गईं:
- हरा रंग — गीला कचरा (फल और सब्जियों के छिलके)
- नीला रंग — सूखा कचरा (प्लास्टिक, कागज)
- लाल रंग — खतरनाक कचरा (बैटरी, मेडिकल वेस्ट)

जो बच्चा सही कचरा सही टोकरी में डालता, उसे ‘हरित सितारा’ मिलता। बच्चे जोश में आ गए और देखते ही देखते, गाँव की गलियाँ साफ होने लगीं।
कचरे से धन
प्रकृति ने फिर गाँववालों को एक खास तरकीब सिखाई — “कचरे से धन”। उसने दिखाया कि कैसे गीले कचरे से कंपोस्ट बनाकर खेतों में डाला जा सकता है और सूखे कचरे को रीसाइक्लिंग सेंटर भेजकर पैसे कमाए जा सकते हैं।
गाँव के मुखिया ने जब यह देखा, तो उन्होंने पूरे गाँव में कंपोस्ट गड्ढे बनवाने का आदेश दिया। अब किसान महंगे रासायनिक खाद की जगह कंपोस्ट का इस्तेमाल करने लगे। फसलें लहलहाने लगीं और गाँव के लोग खुशहाल हो गए।
प्लास्टिक का प्रकोप
लेकिन एक दिन, गाँव के पास बहने वाली नदी अचानक गंदगी से भर गई। पता चला कि पास के शहर से प्लास्टिक का कचरा बहकर आया था। प्लास्टिक ने मछलियों और अन्य जलजीवों को बीमार कर दिया।
प्रकृति को बहुत दुःख हुआ। उसने बच्चों को समझाया कि प्लास्टिक हजारो सालो तक नष्ट नहीं होता और हमें “Say No to Plastic” अभियान चलाना होगा। बच्चों ने कपड़े के थैले बनाए और घर-घर जाकर बाँटे। गाँव के लोग अब बाजार जाते समय कपड़े के थैले और स्टील की बोतलें लेकर जाने लगे।
सतत जीवनशैली की शुरुआत
प्रकृति ने सोलर पैनल, बायोगैस और वर्षा जल संचयन जैसी तकनीकों के बारे में बताया। उसने एक कविता सुनाई:
“सूरज की किरणें हैं वरदान,
सोलर ऊर्जा आसान करे हर काम।
जल की हर बूँद है अनमोल,
संभालें इसे, यही है सही goal.’
गाँव के लोग सोलर पैनल लगाने लगे और बायोगैस से खाना पकाने लगे। जल संचयन से गाँव में पानी की कमी भी दूर हो गई।
पर्यावरण महोत्सव और पुरस्कार
एक साल बाद, हरितपुर फिर से हराभरा हो गया। पेड़ लहराने लगे, नदियाँ साफ बहने लगीं और पक्षी लौट आए। बच्चों ने मिलकर “पर्यावरण महोत्सव” मनाया। इसमें कचरा प्रबंधन, रीसाइक्लिंग और पौधारोपण पर कई खेल और प्रदर्शनियां हुईं।
मुखिया ने प्रकृति को धन्यवाद देते हुए कहा, “तुमने हमारे गाँव को बचाया है। हम हमेशा तुम्हारी शिक्षा का पालन करेंगे।”
प्रकृति ने मुस्कुराते हुए कहा, “मुझे धन्यवाद मत दो। असली नायक तो तुम सब हो। याद रखना, “पृथ्वी हमारी माँ है, इसकी रक्षा हमारा धर्म है।”
इतना कहकर प्रकृति जीवन वृक्ष में विलीन हो गई, लेकिन उसके द्वारा सिखाई गई बातें हमेशा के लिए गाँववालों के दिलों में बस गईं।
हरितपुर अब आदर्श गाँव बन चुका था। अन्य गाँवों के लोग वहाँ आकर रीसाइक्लिंग और पर्यावरण संरक्षण की विधियाँ सीखने लगे। प्रकृति भले ही चली गई थी, पर उसकी शिक्षा हरितपुर के हर व्यक्ति के दिल में बस गई थी।
इस तरह, प्रकृति ने न सिर्फ हरितपुर बल्कि पूरे क्षेत्र को यह सिखा दिया कि सही ज्ञान और थोड़ी सी मेहनत से पर्यावरण को बचाया जा सकता है।